हरियाणा विधानसभा में महिलाओं की कम भागीदारी: 1966 से अब तक सिर्फ 87 महिलाएं चुनी गईं, महिला मुख्यमंत्री का इंतजार जारी
हरियाणा विधानसभा में महिलाओं की कम भागीदारी, जिसे 1966 में एक अलग राज्य के रूप में स्थापित किया गया, ने अपनी राजनीति में पुरुषों का प्रभुत्व देखा है। राज्य की विधानसभा में अब तक केवल 87 महिलाएं चुनी गई हैं, जो कि राजनीतिक परिदृश्य में महिलाओं की सीमित भागीदारी को दर्शाता है। यह आंकड़ा हरियाणा के सामाजिक और सांस्कृतिक ढांचे को चुनौती देता है, जहां महिलाएं समाज के अन्य क्षेत्रों में सक्रिय रूप से भाग ले रही हैं, लेकिन राजनीति में उनकी उपस्थिति कम ही रही है।
हरियाणा का सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य
हरियाणा के इतिहास और सांस्कृतिक दृष्टिकोण को देखें तो यहां का समाज पुरुषप्रधान रहा है। कृषि और ग्रामीण क्षेत्रों में प्रमुखता से पुरुष ही आर्थिक और राजनीतिक रूप से सक्रिय रहे हैं। इसके साथ ही जाति और पितृसत्तात्मक संरचनाएं महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी को सीमित करने वाले कारक माने जाते रहे हैं।
राजनीति में महिलाओं की संख्या में कमी का एक प्रमुख कारण राजनीति में महिलाओं की अनुपस्थिति को लेकर समाज में फैले विभिन्न प्रकार के पूर्वाग्रह हैं। महिलाओं को अक्सर कमजोर या निर्णय लेने की क्षमता में कमतर समझा जाता है, जो उन्हें चुनावों में सामने आने से रोकता है।
महिलाओं की भागीदारी की चुनौतियां
राजनीति में महिलाओं की सीमित भागीदारी का एक अन्य कारण यह है कि राजनीतिक दल भी महिलाओं को चुनाव लड़ने के लिए बहुत कम टिकट देते हैं। पुरुषों के प्रभुत्व वाले समाज में यह माना जाता है कि महिलाएं राजनीति के क्षेत्र में सफल नहीं हो सकतीं। हालांकि, महिलाएं शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर आगे बढ़ी हैं, लेकिन राजनीति के क्षेत्र में अब भी यह बदलाव उतना स्पष्ट नहीं हो पाया है।
हरियाणा जैसे राज्यों में जातीय समीकरण और परिवारवाद भी एक बड़ी चुनौती बनकर उभरते हैं। बहुत सी महिलाएं जिन्हें राजनीति में अवसर मिले, वे पहले से राजनीतिक परिवारों से संबंध रखती हैं, लेकिन वे भी अक्सर समाज के दबाव के कारण निर्णयात्मक भूमिकाओं में नहीं आ पातीं।
महिला नेतृत्व का अभाव
हरियाणा ने अब तक किसी महिला मुख्यमंत्री को नहीं देखा है। यह इस बात का संकेत है कि राज्य में महिलाओं के राजनीतिक नेतृत्व को स्वीकार करने की प्रक्रिया धीमी रही है। हालांकि, कुछ महिलाएं महत्वपूर्ण राजनीतिक पदों पर पहुंची हैं, लेकिन शीर्ष नेतृत्व में महिलाओं की अनुपस्थिति जारी है।
यह परिदृश्य तब और भी दिलचस्प हो जाता है जब हम अन्य राज्यों की तुलना करते हैं जहां महिला मुख्यमंत्री रही हैं। हरियाणा जैसे कृषि प्रधान राज्य में महिलाओं की भूमिका को केवल परिवार और कृषि कार्य तक सीमित मानना एक पुरानी सोच का परिणाम है।
सुधार की दिशा में कदम
राजनीतिक दलों को चाहिए कि वे महिलाओं को अधिक अवसर प्रदान करें और उन्हें महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त करें। महिलाओं के लिए आरक्षित सीटें भी एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है, ताकि उनकी राजनीतिक भागीदारी को बढ़ावा मिल सके।
साथ ही, महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए शिक्षा, जागरूकता और नेतृत्व कार्यक्रमों की भी आवश्यकता है। जब तक समाज में महिलाओं को बराबरी का दर्जा नहीं दिया जाएगा, तब तक वे राजनीति में भी प्रभावशाली भूमिका निभाने में सफल नहीं हो पाएंगी।
निष्कर्ष
हरियाणा की राजनीतिक प्रणाली में महिलाओं की सीमित भागीदारी इस बात का प्रमाण है कि समाज में लैंगिक असमानता अब भी व्याप्त है। हालांकि, राज्य के अन्य क्षेत्रों में महिलाओं ने सफलता हासिल की है, लेकिन राजनीतिक नेतृत्व में वे अभी भी संघर्षरत हैं। राजनीतिक दलों और समाज दोनों को मिलकर इस दिशा में काम करना होगा ताकि भविष्य में हरियाणा की विधानसभा में अधिक महिलाएं नजर आएं और एक महिला मुख्यमंत्री का सपना साकार हो सके।
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